Pregnancy Confirmation Test: गर्भावस्था की पुष्टि के लिए रक्त परीक्षण

Pregnancy confirmation Test In Hindi: इस पोस्ट में गर्भावस्था की पुष्टि के लिए किये जाने वाले रक्त परीक्षण के बारे में बताया गया है। इसके अलावा इस पोस्ट में पहली तिमाही में किये जाने वाले कुछ अन्य रक्त परीक्षण (Pregnancy first trimester blood test) के बारे में भी बताया है जो गर्भवती और उसके शिशु दोनों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

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2 प्रेगनेंसी की पहली तिमाही के ब्लड टेस्ट | Pregnancy First Trimester Blood Test in Hindi

गर्भावस्था की पुष्टि के लिए रक्त परीक्षण | Pregnancy confirmation test in Hindi

Pregnancy confirmation Test In Hindi, गर्भावस्था की पुष्टि

पीरियड का ना आना प्रेगनेंसी का पहला संकेत हो सकता है। यदि आपको लगे आपको पीरियड नहीं आया है तब आप घर में ही रहकर प्रेगनेंसी टेस्ट किट द्वारा इस बात की पुष्टि कर सकती हैं। 

डॉक्टर पीरियड्स मिस होने के लगभग एक हफ्ते बाद प्रेग्नेंसी टेस्ट करने की सलाह देते हैं।

अगर आपका घरेलू टेस्ट (प्रेगनेंसी होम किट द्वारा) पॉजिटिव आता है तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से चेकअप करवाना चाहिए। 

डॉक्टर से चेकअप करवाने पर, डॉक्टर आपको कुछ और टेस्ट करवाने की सलाह देंगें। ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार घर में किया गया टेस्ट गलत भी हो सकता है।

इसलिए डॉक्टर गर्भावस्था की पुष्टि करने के लिए निम्न टेस्ट करवा सकते हैं। जिनमें अल्ट्रासाउंड, यूरिन परीक्षण और HCG परीक्षण प्रमुख हैं।

  • अल्ट्रासाउंड, 
  • यूरिन परीक्षण और 
  • HCG परीक्षण  

1. गर्भावस्था की पुष्टि के लिए अल्ट्रासाउंड – Sonography scan for pregnancy confirmation test in Hindi

गर्भावस्था की पुष्टि के लिए डॉक्टर अल्ट्रासाउंड टेस्ट करवाते हैं। इसके आलावा गर्भावस्था की शुरुआत में अल्ट्रासाउंड का उपयोग भ्रूण के दिल की धड़कन, गर्भावस्था के स्थान और आपकी डिलीवरी की अनुमानित तारीख बताने के लिए भी करते हैं। 

2. गर्भावस्था की पुष्टि के लिए HCG यूरिन टेस्ट – Urine HCG for pregnancy confirmation test in Hindi

ह्यूमन कोरियोनिक गॉनाडोट्रोपिन (HCG) हार्मोन की मौजूदगी से पता चलता है कि महिला गर्भवती है या नहीं। इसके लिए यूरिन में HCG हॉर्मोन का स्तर देखा जाता है।
अगर HCG हॉर्मोन यूरिन में मौजूद है, तो इसकी मौजूदगी प्रेगनेंसी का संकेत होता है।

3. गर्भावस्था की पुष्टि के लिए बीटा-एचसीजी ब्लड टेस्ट –  Blood HCG for Pregnancy confirmation test in Hindi

HCG ब्लड टेस्ट (गर्भावस्था परीक्षण), रक्त में मौजूद HCG हार्मोन के स्तर को मापता है। HCG को प्रेग्नन्सी हार्मोन भी कहा जाता है।

गर्भावस्था के दौरान विकसित हो रहे भ्रूण की प्लेसेंटा सेल्स (Placenta cells), HCG हार्मोन तैयार करते हैं। गर्भधारण के लगभग 10 दिन के बाद खून व मूत्र में HCG की मात्रा दिखने लगती है जिसका स्तर पहली तिमाही में ज्यादा होता है और फिर धीरे धीरे कम हो जाता है। प्रेगनेंसी में एचसीजी (HCG) टेस्ट को निम्नलिखित कारणों से किया जा सकता है: 

  • गर्भावस्था की पुष्टि करने के लिए,
  • भ्रूण की सटीक उम्र पता करने के लिए,
  • किसी असाधारण गर्भावस्था को पता लगाने के लिए,
  • अनुवांशिक विकारों जैसे डाउन सिंड्रोम का पता लगाने के लिए।

ऊपर बताए गई जांचों के बाद अगर आपकी गर्भावस्था की पुष्टि हो जाती है, तब शिशु के जन्म की संभावित तारीख की गणना आपके अंतिम पीरियड की तारीख के आधार पर की जाती है।

डॉक्टर इस बात की सलाह भी देते हैं कि प्रेगनेंसी में क्या खाएं और क्या नहीं, ताकि आप और आपका भ्रूण दोनों ही स्वस्थ रहें। 

प्रेगनेंसी की पहली तिमाही के ब्लड टेस्ट | Pregnancy First Trimester Blood Test in Hindi

गर्भावस्था की पुष्टि होने के बाद डॉक्टर पहली तिमाही में कुछ प्रेगनेंसी ब्लड टेस्ट (Pregnancy blood test) करवाने की सलाह देते हैं। जिसमें शामिल हैं –
  • हीमोग्‍लोबिन (Hemoglobin) परीक्षण,
  • आरएच फैक्टर (RH factor),
  • वीनर रोग अनुसंधान प्रयोगशाला (VDRL) परीक्षण,
  • हेपेटाइटिस (Hepatitis) परीक्षण,
  • एचआईवी (HIV) परीक्षण,
  • थैलासीमिया परीक्षण,
  • थायराइड (Thyroid) के स्तर की परीक्षण,
  • पैप (Pap) परीक्षण,
  • प्रेगनेंसी एसोसिएटेड प्लाज्मा प्रोटीन-ए (PAPP-A) टेस्ट,
  • न्यूकल ट्रांसलेंसी (NT) स्कैन

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1.  प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में हीमोग्‍लोबिन ब्लड टेस्ट – Hemoglobin test during pregnancy in Hindi

हीमोग्‍लोबिन एक ऐसा प्रोटीन है जो लाल रक्‍त कोशिकाओं में होता है और पूरे शरीर में ऑक्‍सीजन पहुँचता है

प्रेगनेंसी के दौरान आपका हीमोग्‍लोबिन का स्तर संतुलित रहना चाहिए ताकि शरीर में ऑक्‍सीजन की सप्‍लाई ठीक रहे साथ ही गर्भ में पल रहे शिशु को भी ऑक्सीजन की उचित मात्रा मिलती रहे।

इसलिए, जैसे ही आप गर्भवती होती है, आपके डॉक्टर आपका हीमोग्लोबिन टेस्ट करवाते हैं।

गर्भावस्था के दौरान महिला का हीमोग्लोबिन 11.5-13.5 g/dl होना चाहिए।

यदि हीमोग्लोबिन इससे कम होता है तो महिला एनेमिक मानी जाती है। हालांकि, गर्भावस्था में हीमोग्लोबिन का कम होना एक आम बात है।  

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2. प्रेगनेंसी की पहली तिमाही के दौरान आरएच फैक्टर ब्लड टेस्ट – RH factor test during pregnancy in Hindi

आरएच फैक्टर (RH factor) प्रोटीन का एक प्रकार है जो लाल रक्त कोशिकाएं (red  blood cells) में होता है।

यदि लाल रक्त कोशिकाओं में आरएच फैक्टर नामक प्रोटीन नहीं है तो ऐसा ब्लड आरएच नेगेटिव (RH  Negative) कहलाता है और अगर यह प्रोटीन मौजूद है तो ब्लड आरएच पॉजिटिव (RH  Positive)  होता है।

हर गर्भवती महिला का आरएच टेस्ट किया जाता है। यह सबसे पहले और महत्वपूर्ण परीक्षणों में से एक है।

आरएच नेगेटिव या पॉजिटिव होना कोई बीमारी नहीं होती है और यह आपके स्वास्थ्य को प्रभावित भी नहीं करता है। लेकिन गर्भवती महिला के आरएच नेगेटिव होने पर यह गर्भधारण को प्रभावित कर सकता है।

यदि महिला आरएच नेगेटिव हो और बच्चे के पिता आरएच पॉजिटिव हैं तो बहुत सम्भावना है कि शिशु आरएच पॉजिटिव हो।

ऐसे में यदि गर्भवती महिला और उसके गर्भ में पल रहे शिशु का रक्त आपस में मिल जाए, तो आपका शरीर गर्भ में पल रहे शिशु के विरुद्ध एंटीबॉडी बनाना शुरू कर देता है जो आपके बच्चे की लाल रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है।

इससे आपके बच्चे में एनीमिया और अन्य जटिल समस्याओं का विकास हो सकता है।

हालांकि, पहली गर्भावस्था में बनी एंटीबॉडी कि संख्या बहुत काम होती है और यह शिशु को नुकसान नहीं पहुँचती हैं।

परन्तु, मां की इम्यून सिस्टम आरएच कारक के प्रति संवेदनशील हो जाती है और दूसरी गर्भावस्था में यह एंटीबॉडी बड़ी संख्या में बनती हैं, जो प्लेसेंटा को पार कर भ्रूण की लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं और बच्चे में स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्य विकार उत्पन करती हैं।

इसे नीचे दी गई तालिका से समझें –

1. यदि महिला Rh + और पुरुष Rh + है, तो शिशु को कोई दिक्कत नहीं होती है।

2. यदि महिला Rh – और पुरुष Rh – है, तो शिशु को कोई दिक्कत नहीं होती है।

3. यदि महिला Rh + और पुरुष Rh – है, तो शिशु को कोई दिक्कत नहीं होती है।

4. यदि महिला Rh – और पुरुष Rh + है = तो बच्चा Rh + या Rh – हो सकता है। इसलिए, डॉक्टर महिला को आरएच इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन (Rh immune globulin injections) लगवाने की सलाह देते है।

3. प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में वड्रल जाँच  – VDRL test during pregnancy in Hindi

वीनर रोग अनुसंधान प्रयोगशाला (VDRL) परीक्षण का उपयोग यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि क्या गर्भवती महिला सिफलिस (Syphilis) पैदा करने वाले बैक्टीरिया से संक्रमित तो नहीं है। 

इसके संक्रमण का मूल माध्यम यौन संपर्क है। यह परीक्षण बैक्टीरिया (Treponema pallidum) के खिलाफ शरीर में बनी एंटीबॉडी की उपस्थिति का पता लगाता है।

यह बैक्टीरिया रक्त में होते हैं, जिसकारण यह किसी भी व्यक्ति को संक्रमित कर सकते हैं जो उस संक्रमित व्यक्ति का ब्लड लेते हैं। 

यह बीमारी गर्भनाल द्वारा मां से बच्चे में भी जा सकती है। जिसकारण पैदा हुए शिशु में पैदाइशी सिफलिस हो सकता है। जिससे शिशु के आंख, जोड़ों और रक्त में संक्रमण हो सकता हैयह परीक्षण एक प्रकार का ब्लड टेस्ट ही है।

4. प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में हेपेटाइटिस टेस्ट – Hepatitis test during pregnancy in Hindi

हेपेटाइटिस परीक्षण एक प्रकार का संक्रमण है जो लीवर को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है और यदि आप गर्भवती हैं, तो आप इसे अपने नवजात शिशु को दे सकती हैं। जिससे शिशु का लिवर खराब हो सकता है।

यह एक प्रकार का ब्लड टेस्ट है। हेपेटाइटिस बी (HBV) से ग्रस्त मां से पैदा होने वाले शिशुओं में क्रोनिक हेपेटाइटिस (Chronic hepatitis) विकसित होने की संभावना लगभग 90 प्रतिशत से अधिक होती है।

हालांकि हेपेटाइटिस सी (HCV) से संक्रमित महिलाऐं अपने शिशुओं को संक्रमित करने की सम्भावना 1-8 प्रतिशत तक ही होती है।

इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि गर्भवती महिलाओं को प्रसव से पहले अपने हेपेटाइटिस के संक्रमण होने की स्थिति का पता होना चाहिए।

यदि आप का परीक्षण हेपेटाइटिस संक्रमण के लिए सकारात्मक आता है, तो आपके नवजात शिशु को प्रसव के तुरंत बाद हेपेटाइटिस की वैक्सीन लगाई जाती है।

आमतौर पर यह संक्रमण आपके शिशु को कोई नुकशान नहीं पहुँचाता है और न ही आपकी गर्भावस्था को प्रभावित करता है।

5. प्रेगनेंसी की पहली तिमाही के दौरान एचआईवी टेस्ट – HIV test during pregnancy in Hindi

HIV (मानव इम्युनोडिफीसिअन्सी वायरस) एक वायरस है जो संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर की क्षमता को प्रभावित करता है और यदि इसे बिना उपचार  के रखा जाए तो यह एड्स (Acquired immunodeficiency syndrome) को जन्म दे सकता है। 

यह एक प्रकार का ब्लड टेस्ट है। यदि गर्भवती को एचआईवी (HIV) है और इसका इलाज नहीं किया गया है, तो आपके शिशु को HIV होने की सम्भावना काफी अधिक रहती है, जो शिशु के स्वास्थ को प्रभावित कर सकती है।

हालांकि गर्भावस्था में यदि HIV का इलाज कराया जाए तो इसके शिशु में संक्रमण करने की सम्भावना काफी हद तक काम हो सकती है।

6. प्रेगनेंसी की पहली तिमाही के दौरान थैलासीमिया परीक्षण – Thalassemia test during pregnancy in Hindi

शरीर में सामान्य से कम लाल रक्त कोशिकाओं और कम हीमोग्लोबिन होना थैलेसीमिया कहलाता है।

थैलेसीमिया एक आनुवांशिक (जेनेटिक) रक्त विकार है, इसका मतलब है कि यह विकार माता-पिता से बच्चे में जीन (gene) के माध्यम से जाता है। इसकी पहचान बच्चे मे तीन माह की आयु के बाद ही हो पाती है।

इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाना पड़ता है। थैलेसीमिया दो प्रकार का होता है,

  • माइनर और
  •  मेजर

यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता में माइनर थेलेसीमिया जींस है, तो बच्चे में मेजर थेलेसीमिया हो सकता है, जो काफी घातक होता है, और यदि माता पिता में से किसी एक को ही माइनर थेलेसीमिया है तो बच्चे को खतरा नहीं रहता या खतरा काफी हद तक काम हो जाता है और बच्चे को माइनर थेलेसीमिया ही रहता है।

डॉक्टर इस रोग केपरीक्षण के लिए HPLC थैलेसीमिया स्क्रीनिंग करवाते हैं। जो कि एक  प्रकार का ब्लड टैस्ट है।

7. प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में थायराइड टेस्ट – Thyroid test during pregnancy in Hindi

प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में शिशु के मस्तिष्‍क और तंत्रिका तंत्र के विकास के लिए थायराइड हार्मोन विशेष भूमिका निभाता है। 

थायराइड हार्मोन का अधिक होना हाइपरथायरायडिज्म (Hyperthyroidism) के रूप में जाना जाता है और इसका कम होना हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) कहलाता है।

इसलिए इसका नियंत्रित रहना बहुत जरुरी है मां में हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म दोनों बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकता हैं। 

गर्भावस्था के दौरान HCG हार्मोंस का निर्माण होता है। जो रक्त में थायराइड हार्मोंस के स्तर को बढ़ा देता है।

थायराइड परीक्षण एक प्रकार का ब्लड टैस्ट है। डॉक्टरों के अनुसार, एक स्वस्थ गर्भवती महिला में थायराइड का स्तर थोड़ा अधिक होना गंभीर समस्या नहीं है।

थायराइड का पता टीएसएच (TSH) के जरिए लगाया जाता है। TSH टेस्ट ब्लड में थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन्स को मापता है।

  • प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में टीएसएच का स्तर 0.6 – 3.4 mIU/L के बीच होना चाहिए।
  • प्रेगनेंसी की दूसरी तिमाही में टीएसएच का स्तर 0.37 – 3.6 mIU/L के बीच होना चाहिए।
  • प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में टीएसएच का स्तर 0.38 – 4.0 mIU/L के बीच होना चाहिए।

8. प्रेगनेंसी की पहली तिमाही के दौरान पैप टेस्ट – Pap test during pregnancy in Hindi

पैप स्मीयर परीक्षण या पैट टेस्ट महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा कैंसर (सर्वाइकल कैंसर) के शुरूआती लक्षणों की जांच के लिए किया जाता है।

इस टेस्ट के लिए गर्भाशय ग्रीवा (बच्चेदानी के मुख) की कोशिकाओं से सैंपल निकाला जाता है इस टेस्ट के जरिए कुछ प्रकार के वायरस के संक्रमण की जांच की जाती है। इसमें एचपीवी (HPV) भी शामिल है।

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9. प्रेगनेंसी की पहली तिमाही के दौरान एसोसिएटेड प्लाज्मा प्रोटीन-ए टेस्ट – PAPP-A test during pregnancy in Hindi

पीएपीपी-ए एक प्रोटीन है जो गर्भनाल और भ्रूण द्वारा स्रावित किया जाता है। यह प्रोटीन भ्रूण को मां के इम्यून सिस्टम (antibody) से रक्षा करता है और शिशु के शरीर में नई रक्त वाहिकाओं का विकास करता है।

एक सामान्य गर्भावस्था में पीएपीपी-ए का स्तर बढ़ जाता है और डिलीवरी के समय तक इसका स्तर अधिक रहता है।

इस प्रोटीन का उपयोग भ्रूण के विकास को पहचानने के लिए एक मार्कर के रूप में भी किया जाता है।

यदि गर्भावस्था के समय पीएपीपी-ए का स्तर नहीं बढ़ता है या स्तर असमान्य हो, तो इस का मतलब यह माना है कि भ्रूण का जन्म किसी क्रोमोजोनल असामान्यता (Trisomy 21 or Down Syndrome) के साथ हो सकता है। 

यह टेस्ट लगभग 10-11 सप्ताह के बीच करवाया जा सकता है।  

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10. प्रेगनेंसी की पहली तिमाही के दौरान न्यूकल ट्रांसलेंसी स्कैन – Nuclear translational scan during pregnancy in Hindi

ऊपर बताए गए सभी टेस्टों के बाद लगभग 10-11 सप्ताह के बीच डॉक्टर न्यूकल ट्रांसलेंसी (NT) स्कैन का परीक्षण करवाते हैं।

न्यूकल ट्रांसलेंसी (NT) स्कैन का परीक्षण में बच्चे के सिर और गर्दन की मोटाई को मापने के लिए एक अल्ट्रासाउंड होता है और साथ ही डबल मार्कर (Double marker) ब्लड टेस्ट करवाते हैं, जो यह निर्धारित करने में मदद करता कि आपका बच्चा डाउन सिंड्रोम नामक एक आनुवंशिक (Genetic) विकार (Disorder) के साथ पैदा तो नहीं होगा। 

इस टेस्ट के परिणाम आपको बस यह बताएंगे कि क्या आपके बच्चे में आनुवंशिक विकार (genetic disorder) सामान्य आबादी की तुलना में उच्च जोखिम वाला है या कम जोखिम वाला है। 

हालांकि, इस टेस्ट केनतीजे 100 प्रतिशत सही नहीं होते हैं। 

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निष्कर्ष | Conclusion

गर्भावस्था की पुष्टि अल्ट्रासाउंड और रक्त में मौजूद HCG हार्मोन के स्तर को माप कर की जाती हैगर्भावस्था की पुष्टि हो जाने के बाद आपके डॉक्टर पहली तिमाही में कई प्रकार के परीक्षण करवाने की सलाह देते हैं। ये टेस्ट गर्भ में पल रहे शिशु के विकास की निगरानी और असामान्यता का शीघ्र पता लगाने में मदद करते हैं।

याद रखें ,कोई भी मेडिकल परीक्षण कभी भी 100 प्रतिशत सटीक नहीं होता है। हालांकि, अधिकांश मामलों में गर्भावस्था परीक्षण बहुत ही विश्वसनीय होते हैं और बिल्कुल सटीक परिणाम देते हैं।  सामान्यतः गर्भावस्था के 11 वें सप्ताह तक पहली तिमाही के सभी परीक्षण पूरी हो जाती है।

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ये हैं गर्भावस्था की पुष्टि औगर्भावस्था की पुष्टि के बाद पहली तिमाही में किये जाने वाले ब्लड टेस्ट की पूरी जानकारी। कमेंट में बताएं आपको यह पोस्ट कैसी लगी। अगर पोस्ट पसंद आई हो तो इसे शेयर जरूर करें।

Disclaimer : ऊपर दी गई जानकारी पूरी तरह से शैक्षणिक दृष्टिकोण से दी गई है और यह कहीं से भी योग्य डॉक्टर द्वारा दिए गए मेडिकल सुझाव का विकल्प नहीं है। इस जानकारी का उपयोग किसी भी बीमारी के निदान या उपचार हेतु बिना विशेषज्ञ की सलाह के नहीं किया जाना चाहिए।

सन्दर्भ (References)

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