Pregnancy Blood Test : गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के दौरान ब्लड टेस्ट

Pregnancy Blood Test in Hindi : इस पोस्ट में हमने गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में होने वाले ब्लड टेस्ट ( प्रेगनेंसी ब्लड टेस्ट) के बारे में बताया है।

प्रसव पूर्व परीक्षण (Prenatal test) आपके स्वास्थ्य और आपके बढ़ते बच्चे के विकास दोनों के लिए एक बहुमूल्य जानकारी प्रदान कर सकते हैं। गर्भावस्था की दूसरे तिमाही में डॉक्टर आपकी प्रेगनेंसी टेस्ट के दौरान कई प्रकार के टेस्ट करवा सकते हैं।

याद रखें सभी महिलाओं में यह टेस्ट एक जैसे नहीं होते हैं। यह टेस्ट आपकी आयु, स्वास्थ्य, पारिवारिक स्वास्थ्य इतिहास और अन्य चीजों पर आधारित रहते हैं। इसलिए डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही यह टेस्ट करवाएं। उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था में सामान्य गर्भावस्था के मुकाबले अधिक टेस्ट किये जा सकते हैं।

उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था उन महिलाओं में होती है जिनकी आयु 35 वर्ष से अधिक हो, महिला को मधुमेह हो या इंसुलिन का उपयोग कर रही हों, गर्भावस्था के दौरान वायरल संक्रमण हुआ हो, उच्च रक्तचाप हो व आनुवांशिक बीमारियों से ग्रस्त हों।

चलिए अब इस लेख को शुरू करते हैं।

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1 गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के दौरान ब्लड टेस्ट | Second Trimester Pregnancy Blood Test In Hindi

गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के दौरान ब्लड टेस्ट | Second Trimester Pregnancy Blood Test In Hindi

गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के महत्वपूर्ण ब्लड टेस्ट, प्रेगनेंसी ब्लड टेस्ट,Pregnancy Blood Test
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गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में किये जाने वाले प्रेगनेंसी टेस्ट में शामिल हैं-

  • अल्ट्रासाउंड जांच (या अल्ट्रासाउंड लेवल II),
  • एमनियोसेंटेसिस जांच,
  • अल्फा-फेटोप्रोटीन स्क्रीनिंग जांच,
  • ग्लूकोज स्क्रीनिंग जांच,
  • कोरियोनिक विलस सैंपलिंग जांच,
  • कॉर्डोसेंटेसिस जांच,
  • ट्रिपल मार्कर स्क्रीन जांच।

1. गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में अल्ट्रासाउंड – Pregnancy Second Trimester ultrasound scan in Hindi

अल्ट्रासाउंड एक सुरक्षित और दर्द रहित परीक्षण है जिसमें ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है।

गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में अल्ट्रासाउंड विस्तार से किया जाता है। जो 18 से 20 वें सप्ताह के बीच में हो सकता है। जिसमें शिशु की पूरी शरीरिक संरचना देखी जाती है।

इस अल्ट्रासाउंड में शिशु के विकसित हो चुके सिर, हाथ-पैर की उंगलियों, रीढ़ की हड्डी,आंखें, आदि को देखा जा सकता है। साथ ही भ्रूण को अगर कोई समस्या है, तो उसे भी जांचा  जाता है।

अल्ट्रासाउंड (या सोनोग्राफी) के दौरान, पेट के पास एक उपकरण ले जाया जाता है जो कंप्यूटर पर गर्भाशय और भ्रूण दोनों की छवि बनाता है।

नए 3D और 4D अल्ट्रासाउंड (सोनोग्राम), 2D अल्ट्रासाउंड के मुकाबले शिशु की स्पष्ट तस्वीर प्रदान करता हैं, हालांकि, नया 3D और 4D स्कैन हर जगह उपलब्ध नहीं होता हैं।

उच्च जोखिम वाली महिलाओं के दूसरे तिमाही में कई बार अल्ट्रासाउंड हो सकते हैं।

2. गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में एमनियोसेंटेसिस टेस्ट- Amniocentesis pregnancy test in Hindi

यह प्रेगनेंसी टेस्ट आमतौर पर गर्भावस्था की दूसरी तिमाही (15 से 20 वें सप्ताह के बीच) में किया जाता है।

इस परीक्षण में गर्भाशय से एमनियोटिक द्रव (Amniotic fluid) का थोड़ा सा भाग लिया जाता है जो आनुवंशिक दोष (Genetic disorder) जैसे Down syndrome, trisomy 13, trisomy 18 and chromosome abnormalities या तंत्रिका ट्यूब दोष (Neural tube defect) जैसी समस्याओं का पता लगाने में सक्षम होता है।

यह टेस्ट आमतौर पर उन महिलाओं में किया जाता है जिन महिलाओं की गर्भावस्था उच्च जोखिम वाली होती है।

3. गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में अल्फा-फेटोप्रोटीन स्क्रीनिंग ब्लड टेस्ट- Alpha-Fetoprotein pregnancy blood test in Hindi

अल्फा-फेटोप्रोटीन स्क्रीनिंग प्रेगनेंसी टेस्ट आमतौर पर 16 से 18 वें सप्ताह (गर्भावस्था की दूसरी तिमाही) के बीच किया जा सकता है।

यह एक प्रकार का ब्लड टेस्ट होता है। जो गर्भावस्था के दौरान गर्भवती के रक्त में AFP के स्तर को मापता है।

AFP सामान्य रूप से भ्रूण के जिगर द्वारा निर्मित एक प्रोटीन है।

यह प्रोटीन गर्भावस्था के दौरान प्लेसेंटा को पार कर गर्भवती के रक्त में प्रवेश करता है।

AFP ब्लड टेस्ट को मेटेरनल सीरम एएफपी (Maternal serum AFP) भी कहा जाता है।

यह टेस्ट डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) या अन्य क्रोमोसोमल असामान्यताएं (Chromosomal abnormalities) का पता लगाने में किया जा सकता है।

4. गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में ग्लूकोज स्क्रीनिंग ब्लड परीक्षण – Glucose screening pregnancy blood test in Hindi

यह प्रेगनेंसी ब्लड टेस्ट आमतौर पर 24 से 28 वें सप्ताह (गर्भावस्था की दूसरी तिमाही) के बीच किया जा सकता है।

गर्भावस्था के दौरान गर्भावधि मधुमेह यानि जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational diabetes) होने की आशंका बनी रहती है। जो की गर्भवती के खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ने के कारण होती है।

गर्भवती के खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ने पर नवजात शिशु को नर्वस सिस्टम (Nervous system) में खराबी, स्पाइना बिफिडिया (Spina bifida), वातरोग (Arthritis), मूत्राशय (Bladder) या हृदय संबंधी रोग भी हो सकते हैं।

इसलिए गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की जांच के लिए ग्लूकोज स्क्रीनिंग जांच किया जाता है।

भले ही महिला में गर्भावस्था के पहले मधुमेह की समस्या रही हो या फिर नहीं रही हो। ग्लूकोज स्क्रीनिंग जांच हर गर्भवती के लिए अनिवार्य है।

यदि आपका ग्लूकोस स्क्रीनिंग टेस्ट पॉजिटिव आ जाए तो डॉक्टर तब आप का ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट) करवाते हैं।

इस परीक्षण के लिए 8 घंटे का उपवास अनिवार्य है।

परीक्षण से ठीक पहले डॉक्टर आप को (100 ग्राम) ग्लूकोज खाने को कहेंगे। और फिर  एक, दो और तीन घंटो के अंतराल के बाद आप की जांच की जाएगी।

5. गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में कोरियोनिक विलस सैंपलिंग परीक्षण – Chorionic villus pregnancy test in Hindi

यह प्रेगनेंसी टेस्ट आमतौर पर 17 से 18 वें सप्ताह (गर्भावस्था की दूसरी तिमाही) के बीच किया जा सकता है।

कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (CVS) एक प्रीनेटल यानी प्रसव पूर्व जांच है जिसमें कोरियोनिक (Chorionic) विली (villus) का एक नमूना, गर्भनाल (प्लेसेंटा) से निकाला जाता है

गर्भनाल, गर्भाशय में एक संरचना है जो मां से भ्रूण को रक्त और पोषक तत्व प्रदान करती है। इस जांच का उपयोग शिशु के जन्म दोष, आनुवांशिक बीमारियों और अन्य समस्याओं का पता लगाने में किया जाता है।

यह टेस्ट आमतौर पर उन महिलाओं में किया जाता है जिन महिलाओं की गर्भावस्था उच्च जोखिम वाली होती है।

6. गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में कॉर्डोसेंटेसिस जांच – Cordocentesis test in Hindi

कॉर्डोसेंटेसिस प्रेगनेंसी टेस्ट आमतौर पर 17 से 19 वें सप्ताह के बीच किया जा सकता है। यह एक डयग्नोस्टिक जांच है जिसमें भ्रूण की असमान्यताओं का पता लगाने के लिए भ्रूण का ब्लड टैस्ट किया जाता है।

इस जांच में भ्रूण के अम्बिलिकल कॉर्ड (Umbilical cord) से खून लिया जाता है।

यह परीक्षण तभी किया जाता है जब एमनियोसेंटेसिस, कोरियोनिक विलस सैंपलिंग, अल्ट्रासाउंड व अन्य तरीकों से भ्रूण की जांच नहीं हो पाती है। हांलाकि कॉर्डोसेंटेसिस में अन्य तरीकों के मुकाबले भ्रूण के नुकसान का जोखिम अधिक होता है।

यह टेस्ट आमतौर पर उन महिलाओं में किया जाता है जिन महिलाओं की गर्भावस्था उच्च जोखिम वाली होती है।

7. गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में ट्रिपल मार्कर स्क्रीन ब्लड जांच – Triple marker test in Hindi

ट्रिपल मार्कर प्रेगनेंसी ब्लड टेस्ट आमतौर पर 15 से 20 वें सप्ताह के बीच किया जा सकता है। ट्रिपल मार्कर स्क्रीन जांच को ट्रिपल टेस्ट, मल्टीपल मार्कर टेस्ट, मल्टीपल मार्कर स्क्रीनिंग और AFP प्लस टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है।

यह परीक्षण भ्रूण के न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (Neural tube defect), डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) या अन्य क्रोमोसोमल असामान्यताएं (Trisomy 18) का पता लगाने में किया जाता है। जोकि 18-20 सप्ताह के बीच में होता है।

यह टेस्ट तीन महत्वपूर्ण पदार्थों के स्तर को मापता है –

a. एएफपी (Alpha-fetoprotein)

यह भ्रूण द्वारा निर्मित एक प्रोटीन। इस प्रोटीन के उच्च स्तर का होना, कुछ संभावित दोषों को दिखता है, जैसे कि तंत्रिका ट्यूब दोष (Neural tube defect) या भ्रूण के पेट को बंद करने में विफलता।

b. HCG (Human chorionic gonadotropin)

यह प्लेसेंटा द्वारा निर्मित एक हार्मोन है। जिसके कम स्तर का होना संभावित गर्भपात या अस्थानिक गर्भावस्था जैसी समस्याओं का संकेत हो  सकता है।

c. एस्ट्रिल (Estriol)

एस्ट्रिल, एस्ट्रोजेन का एक रूप है जो स्वाभाविक रूप से शरीर में उत्पन्न होता है। यह महिलाओं की गर्भनाल (प्लेसेंटा) और भ्रूण दोनों से निकलता है।

एस्ट्रोजन हॉर्मोन बच्चे के सुरक्षित विकास के लिए सबसे जरूरी है।

ऐसे शिशु जिन में डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) होने की सम्भावना होती है उन महिलाओं में AFP और एस्ट्रिऑल का स्तर रक्त में कम हो सकता है।

ट्रिपल मार्कर टेस्ट, उन गर्भवती महिलाओं का कराया जाता है जिनमे निम्लिखित समस्याएं होती हैं-जैसे आनुवांशिक समस्याओं का पारिवारिक इतिहास, महिला की आयु 35 वर्ष या उससे अधिक, महिला को मधुमेह होना या इंसुलिन का उपयोग करना, गर्भावस्था के दौरान वायरल संक्रमण का होना।

और पढ़ें –  Amniotic Fluid की कमी या अधिकता के लक्षण, कारण और इलाज।

ये हैं गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में किये जाने वाले प्रेगनेंसी टेस्ट (Pregnancy Test for Second Trimester in Hindi) की पूरी जानकारी। कमेंट में बताएं आपको यह पोस्ट कैसी लगी। अगर यह पोस्ट पसंद आई हो तो इस पोस्ट को शेयर जरूर करें।
ऊपर दी गई जानकारी पूरी तरह से शैक्षणिक दृष्टिकोण से दी गई है और यह कहीं से भी योग्य डॉक्टर द्वारा दिए गए मेडिकल सुझाव का विकल्प नहीं है।

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